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Monday, June 14, 2010

कस्टमर (रीडर) क्या चाहता है

रीडर की बात आजकल लगभग हर मीडिया हाउस में होती है। तमाम तरह की महंगी रिसर्च कराई जा रही हैं। इनकी फाइंडिंग को पत्थर की लकीर मानकर मैनेजमेंट और खासतौर पर ब्रांड मार्केटिंग के लोग एडीटोरियल को हांकते रहते हैं। एडीटर भी इनके दबाव में रहता है और पूरा एडीटोरियल तनाव में। लेकिन यक्ष प्रश्न अपनी जगह पर बना हुआ है कि आखिर रीडर चाहता क्या है?




दरअसल, सारा मामला रीडर की जानकारी (ज्ञान) संबंधी जरूरतों को पूरा करने का है। सारा मामला कंटेंट को रिलेवेंट बनाने का है। गिवटूगेटमार्केटिंग डाट काम के जो ग्रैशिया बिलकुल सटीक तरीके से अपनी बात रखते हैं- कस्टमर आपकी या आपकी कंपनी की कतई चिंता नहीं करता........ और न ही आपके प्रोडक्ट की। उसको तो एक बात की चिंता है कि वह जो चाहता है, उसे हासिल करने में आप उसकी मदद कर सकते हैं या नहीं। कस्टमर नहीं चाहता कि उसके बेचा जाए बल्कि वह तो मदद चाहता है। (भारत में मामला उल्टा है, यहां के अखबार अपने रीडर को ही बेचते दिखते हैं या फिर शिद्दत से दिखना चाहते हैं)
अगर आपको अपने रीडर को समझना है तो सबसे पहले निम्न पर गौर करिए-
दिल खोलकर अपने रीडर को रिलेवेंट सूचनाएं उपलब्ध कराएं।
खुद से पूछिए कि आपका अखबार अपने रीडर की किन-किन दिक्कतों या समस्याओं को सुलझाने में मदद करता है।
अपने रीडर को खुश रखने पर पूरा फोकस होना चाहिए। यहां तक कंटेंट पढ़े जाने से पहले और बाद में भी रीडर को संतुष्टि (खुशी) देने वाला हो। अगर अखबार की भाषा में कहें तो प्रजेंटेशन तुरंत कंटेंट में उतरने पर मजबूर करने वाला हो और कंटेंट रीडर के दिमाग में उठने वाले सवालों का जवाब देने वाला हो।
रीडर को सहज रखिए और वादे के हिसाब से कंटेंट डिलीवरी करिए।
अपने रीडर का आदर करें और उसे गंभीरता से लें। यह दोनों बातें कंटेंट और कापी में झलकती हैं (इसका उलटा भी कि अखबार अपने रीडर के प्रति कितना बेपरवाह है)
(आपके विचारों का स्वागत है, इससे नई चीजें निकल कर सामने आ सकेंगी जो रीडर को समझने में मददगार साबित हो सकती हैं)