आग्रह

पोस्ट पढ़ने के बाद उस पर अपनी टिप्पणी अवश्य दर्ज करें, इससे हमें इस ब्लाग को उपयोगी बनाने में मदद मिलेगी।

Friday, August 27, 2010

भैया, ये तो बता देते कि नया इनकम टैक्स कानून कब से लागू होगा

आज सभी अखबारों ने पहले पेज इनकम टैक्स की स्लैब्स में बदलाव की खबर छापी है कि कैबिनेट ने इस मसौदे को मंजूरी दे दी है। लेकिन किसी ने यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि यह लागू कब से होगा।
पाठकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण इस खबर के साथ ऐसा ट्रीटमेंट निराशाजनक है।
फालतू के वैल्यू एडीशन पर समय व ऊर्जा जाया करने से बेहतर है कि 5W1H को ही खबर में सुनिश्चित कर लें।
क्या संपादकों, समाचार संपादकों आदि की समझ में यह बात आएगी?

Thursday, August 26, 2010

एआईआर और टीआर की भूलभुलैया

आजकल आईआरएस 2010 क्यू2 की धूम मची हुई है। हर अखबार इस सर्वे को अपने-अपने हिसाब से व्याख्यायित कर रहा है। सबने अपने अपने यहां इन व्याख्याओं को प्रकाशित किया। कोई एवरेज इश्यू रीडरशिप की बात कर रहा है तो कोई टोटल रीडरशिप की। पाठक का परेशान होना लाजिमी है। लेकिन यहां तो बेचारे पत्रकार और संपादक भी कन्फ्यूज हैं। वे अपने संस्थान की व्याख्या को रटे हुए हैं और इसलिए उनको दूसरों की व्याख्याएं गलत ही नहीं बल्कि हास्यास्पद भी लगती हैं। और इस क्रम में जब वे किसी जानकार आदमी से बात करते हैं तो वे खुद हंसी के पात्र बन जाते हैं। यह बात दीगर है कि वे बेचारे जान भी नहीं पाते कि वे अपनी अल्पज्ञता से हंसी के पात्र बन रहे। दरअसल सामने वाले जानकार की बातें मानने को ये सर्वज्ञ पत्रकार व संपादक तैयार ही नहीं होते और सामने वाला बेचारा चुप हो जाता है इस कहावत पर अमल करते हुए कि यदि आप किसी मूर्ख से बहस करेंगे तो दूसरे लोग यह नहीं जान पाएंगे कि मूर्ख कौन है।
और सबसे गजब कर रही हैं हिंदी की मीडिया साइट्स। ये साइट्स विभिन्न अखबारों में छपी रीडरशिप संबंधी खबरों को जस का तस अपने यहां पेस्ट कर दे रहे हैं। तो कहीं कोई अखबार चार करोड़ की पाठक संख्या वाला दिख रहा हैं तो वहीं वह अपनी खबर में एक करोड़ के आकड़े में बात कर रहा है। है न चकरघिन्नी बना देने वाला मामला।
जरूरी है कि कम से कम ये साइटें तो यह स्पष्ट करें कि एआईआर और टीआर होता क्या है।